बद्रीनाथ: शीतकाल के लिए बदरीनाथ धाम के कपाट बंद होने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। शीतकाल में (दिसंबर से मई माह तक) बदरीनाथ धाम बर्फ है। दिसंबर से फरवरी तक धाम से हनुमान चट्टी (10 किमी) तक बर्फ जम जाती है। इस दौरान बदरीनाथ धाम में पुलिस के जवानों और मंदिर समिति के दो कर्मचारियों की ही तैनाती रहती है।
चीन सीमा क्षेत्र होने के कारण माणा गांव में आईटीबीपी के जवान रहते हैं। बदरीनाथ धाम के कपाट बंद होने पर यहां निवासरत बामणी व माणा गांव के ग्रामीणों के साथ ही व्यवसायी बदरीनाथ धाम छोड़कर निचले क्षेत्रों में चले जाते हैं। इसके बाद सेना के जवानों को छोड़कर किसी भी आम व्यक्ति को हनुमान चट्टी से आगे जाने की अनुमति नहीं दी जाती है।

जोशीमठ की एसडीएम कुमकुम जोशी ने बताया कि बदरीनाथ धाम के कपाट बंद होने के दिन तक सभी होटल, ढाबा व अन्य व्यवसायियों को बदरीनाथ धाम छोड़ने के लिए कहा जाता है। कपाट बंद होने के बाद आम लोगों को धाम तक जाने की अनुमति नहीं दी जाती है।
बदरीनाथ के पूर्व धर्माधिकारी भुवन चंद्र उनियाल ने बताया कि बदरीनाथ धाम में पूजा पद्धति की पौराणिक धार्मिक परंपरा का आज भी पूरे विधि विधान से निर्वहन हो रहा है। सनद कुमार संहिता और नारद पुराण में कहा गया कि है कि बदरीनाथ क्षेत्र को भू बैकुंठ कहा जाता है।
जब विष्णु भगवान बदरीनाथ के रूप में यहां ध्यान मुद्रा में रहे तो मानवों और देवताओं में बदरीनाथ की पूजा को लेकर मतभेद हो गया। तब ब्रह्मा के चार पुत्र सनक, सनंदन, सनातन और सनत कुमार ने बदरीनाथ की पूजा को लेकर मध्यस्थता की। उन्होंने कहा कि वर्ष में मानव और देवता छह-छह माह तक बदरीनाथ की पूजा करेंगे।
आदि गुरु शंकराचार्य की ओर से शुरू की गई परंपरा के अनुसार बदरीनाथ की पूजा दक्षिण भारत के मुख्य पुजारी ही पूजा करते हैं जिन्हें रावल कहते हैं। मूर्ति को छूने का अधिकार भी सिर्फ मुख्य पुजारी को ही होता है।
मानव की ओर से ग्रीष्मकाल में बदरीनाथ की पूजा की जाती है। देवताओं की ओर से पूजा का दायित्व महर्षि नारद को सौंपा गया। मान्यता है कि स्वयं भगवान विष्णु ने नारद कुंड में महर्षि नारद को पांच रात्रि तक बदरीनाथ की पूजा की परंपरा सिखाई थी।