Friday, March 29, 2024
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चंद्र ग्रहण के बाद आसमान में दिखेगी खगोलीय घटना, उल्कावृष्टि के शानदार नजारे से आसमान दिखेगा रंगीन

नैनीताल : शुक्रवार रात उपछाया वाले चंद्र ग्रहण से शुरू हो चुकी खगोलीय घटना के बाद मई का महीना अनेक खगोलीय नजारों का गवाह बनने जा रहा है। शनिवार व रविवार की भोर में उल्कावृष्टि के शानदार नजारे से आसमान रंगीन रहेगा। इसके बाद चंद्रमा के इर्दगिर्द आ रहे ग्रह इस माह आसमान की सुंदरता में चार चांद लगाने जा रहे हैं।

आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान एरीज के वरिष्ठ खगोल विज्ञानी डा. शशिभूषण पांडेय ने बताया कि शुक्रवार रात उपछाया वाले चंद्र ग्रहण के दौरान चंद्रमा की रोशनी में मामूली कमी आई। इसके बाद शनिवार व रविवार की भोर उल्काओं की आतिशी नजारे से जगमगाएगी।

भोर से पहले चंद्रमा के अस्त होने के बाद और सूर्योदय से पूर्व अंधेरा रहने के दौरान इन्हें स्पष्ट देखा जा सकेगा। इस खगोलीय घटना में प्रति घंटा दो दर्जन से अधिक उल्कावृष्टि देखी जा सकती हैं। खगोलविदों ने इस घटना को एटा एक्वारिड्स मेटियोर शावर का नाम दिया है।

इसके बाद 13 मई की सुबह चंद्रमा के साथ शनिग्रह नजर आएगा। तब इन दोनों ग्रहों के बीच की दूरी 3.3 डिग्री रह जाएगी। 17 मई की रात का नजारा और भी खास रहने वाला है। सौर परिवार का सबसे बड़ा ग्रह बृहस्पति चांद के पहलू में होगा।

इसके बाद 23 मई को चंद्रमा व शुक्र ग्रह के बीच की आभासीय दूरी मात्र 2.2 डिग्री रह जाएगी। 24 मई को मंगल व चंद्रमा एक साथ दिखेंगे। लालग्रह मंगल चंद्रमा से 3.8 डिग्री की दूरी पर होगा। आसमान में एक डिग्री का मतलब दो फुल मून के बराबर होता है। यह सभी आकाशीय घटनाएं लुभाने वाली होंगी, जिन्हे नग्न आंखों से देखा जा सकेगा।

जिस तारामंडल से उल्कावृष्टि होते हुए नजर आती है, उसी को उल्कावृष्टि का नाम दिया जाता है। एटा एक्वारिड्स यानी कुंभ तारामंडल की दिशा से उल्कावृष्टि होने के कारण इसका नाम एटा एक्वारिडस मेटियोर शावर नाम दिया गया है। एटा एक्वारिड्स की उल्कावृष्टि हेली नामक धूमकेतु के छोड़े गए मलबे से होती है।

धूमकेतु सूर्य की परिक्रमा करते हैं और इस दौरान पृथ्वी के मार्ग में धूल कणों का ढेर सारा मलबा छोड़ जाते हैं। जब पृथ्वी इस मलबे से होकर गुजरती है तो धूल कण पृथ्वी के वातावरण से स्पर्श करते ही जल उठते हैं, तब उल्कावृष्टि की खगोलीय घटना होती है। हेली धूमकेतु 1986 में पृथ्वी के मार्ग से गुजरा था और अगली बार 2061 में सूर्य के करीब पहुंचेगा।

भारतीय तारा भौतिकी संस्थान बेंगलुरु के सेवानिवृत्त विज्ञानी प्रो आरसी कपूर के अनुसार वायुमंडल में 80-100 किमी की ऊंचाई पर उल्कावृष्टि की घटना होती हैं। उल्काओं के जलने के बाद धुंधले धुएं के निशान निकलते हैं। कभी-कभी किसी बड़ी उल्का का टुकड़ा जमीन तक पहुंच जाता है।

एटा एक्वारिड्स के बाद इस वर्ष आधा दर्जन उल्कावृष्टि देखने को मिलेंगी। जिनमें 13-14 अगस्त को पार्शिड मेटयोर शावर, 9-10 अक्टूबर को ड्रेकोनिड्स, 21-22 अक्टूबर को ओरियोनिड्स, 17-18 नवंबर को लियोनिड्स, 14-15 दिसंबर को जेमिनिड्स के बाद साल की अंतिम उल्काई आतिशबाजी 22-23 दिसंबर की रात देखने को मिलेगी।

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