जनपद ऊधम सिंह नगर के रुद्रपुर के भगवानपुर एनएच 74 किनारे सरकारी जमीन पर वर्षो से रह रहे 46 मकानों पर आज हाईकोर्ट के आदेश के बाद प्रशासन का बुलडोजर चला है। इस दौरान सात जेसीबी और एक पोकलैंड की मदद से मकानों को ध्वस्त किया गया। सुरक्षा की दृष्टि से क्षेत्र को भारी पुलिस फोर्स तैनात किया गया था।
जानकारी के अनुसार दो दिन पहले बही भगवानपुर में एनएच 74 सड़क किनारे अतिक्रमण हटाने पहुंची टीम को स्थानीय लोगो और विधायक के विरोध का सामना करने के बाद आज प्रशासन दल बल के साथ भगवानपुर पहुंचा। जिसके बाद एक के बाद एक 46 पक्के मकानों को टीम ने जमीदोष कर दिया। इस दौरान भगवानपुर को छावनी में तब्दील किया हुआ था। दरअसल हाईकोर्ट ने एक आदेश पर एनएच 74 किनारे अवैध रूप से वर्षो से रह रहे 46 परिवारों को हटाने के निर्देश दिए गए थे। 11 जुलाई को प्रशासन, पुलिस टीम, एनएच की टीम अतिक्रमण हटाने पहुंची थी जिसके बाद भारी विरोध के बीच टीम को बैरंग लौटना पड़ा था। इस बीच पुलिस प्रशासन और स्थानीय लोगो के बीच तीखी नोकझोक भी हुई थी। जिसके बाद आज पूरी तैयारियों के बाद प्रशासन, एनएच, पीडब्ल्यूडी, नगर निगम की टीम मौके पर पहुंची। इस दौरान जनपद की तमाम पुलिस फोर्स को भगवानपुर में तैनात किया था।
वही अपने घरो पर जेसीबी चलता और मलबे के बीच सामानों को निकालते लोग हताश हैं। महिलाएं और छोटे-छोटे बच्चों के आंखों में आंसू हैं। वही गरीब होना ही हमारे लिए सबसे बड़ा अभिशाप है। इस सिस्टम में गरीबों की कोई नहीं सुनता है। जब गलत थे, तो हमे इंदिरा, निर्बल वर्ग आवास क्यों आवंटित किए गए। उनको घर से सामान तक नहीं निकालने दिया गया और अपराधियों सा सलूक किया गया। पूरी रात बच्चों के साथ गर्मी, बारिश में बिना बिजली के भूखे प्यासे रहकर काटी है। यह दर्द है भगवानपुर कोलड़िया के ग्रामीणों का।
नेशनल हाईवे किनारे स्थित 45 परिवारों वाले क्षेत्र में स्थित घर मलबे के ढेर में बदल गए हैं। जो घर छूट गए हैं, उनका नंबर भी आना तय है। मलबे के बीच सामानों को निकालते लोग हताश हैं। महिलाएं और छोटे-छोटे बच्चों के आंखों में आंसू के साथ ही भविष्य को लेकर चिंताएं हैं। गांव में मौजूद जयप्रकाश तोड़े गए इंदिरा आवासों को दिखाते हुए कहते हैं कि यूपी और उत्तराखंड के समय 20 से ज्यादा परिवारों को सरकारी योजनाओं के तहत आवास दिए गए। अब इन आवासों को अवैध बताकर तोड़ दिए गए। मेहनत मजदूरी करने वाले लोगों ने खूब पसीना बहाकर आशियाने बनाए, जो उजाड़ दिए गए। वे क्या करें, कहां जाएं, समझ नहीं आता है। इसी बीच ग्रामीण शंभूनाथ 1989-90 में पिता को मिले आवास आवंटन पत्र दिखाते हुए कहते हैं कि या तो तब के अफसर गलत थे या फिर अब अफसरों ने गलत किया है। पुलिस कार्यालय में परिजनों के साथ प्रदर्शन करने आए मासूम बच्चों के लिए 24 घंटे बेहद मुश्किल भरे रहे। स्कूल के बजाए पुलिस कार्यालय आने के सवाल पर बच्चों ने कहा कि अंकल हमारा तो घर ही तोड़ दिया गया है। बृहस्पतिवार को स्कूल से घर आने के बाद ठीक से न सो सके हैं और न खा पाए हैं। स्कूल तो चले ही जाएंगे, मगर पहले उनको रहने के लिए घर तो मिल जाए। उनका घर तो तोड़ दिया गया है। मासूम चेहरों से मिले समझदारी भरे जवाब से उनकी आपबीती समझी जा सकती है।