Saturday, July 27, 2024
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समलैंगिक विवाह पर कानून बनाने को लेकर साधु- संत समाज का विरोध, 10 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से करेंगे मुलाकात

हरिद्वार: इन दिनों समलैंगिक विवाह पर कानून बनाने को लेकर विरोध जारी है. हरिद्वार के साधु-संतों समाज भी समलैंगिक विवाह का पुरजोर विरोध कर रहे हैं. आज हरिद्वार में हुए संत सम्मेलन में अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष और महानिर्वाणी अखाड़े के सचिव महंत रविंद्रपुरी ने समलैंगिकता विवाह कानून बनाने का विरोध किया. उन्होंने कहा इस प्रकार का कानून देश में नहीं बनना चाहिए. वहीं, समलैंगिक विवाह कानून के विरोध में उन्होंने 10 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात करने की बात कही.अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रविंद्रपुरी ने कहा विवाह भारत प्राचीन परंपरा है. विवाह की जो पद्धति, पाणिग्रहण संस्कार है, उसका शास्त्रों में उल्लेख आता है, लेकिन इन दिनों कुछ चुनिंदा लोग समलैंगिक विवाह की मांग कर रहे हैं. समलैंगिक विवाह की मान्यता के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है. उसका साधु समाज विरोध करता है.

उन्होंने कहा सेम सेक्स मैरिज भारत की परंपरा नहीं है. भला एक कन्या दूसरी कन्या से और एक पुरुष दूसरे पुरुष से शादी कैसे कर सकता है ?. न यह संवैधानिक रूप से सही है और न ही जेनेटिक रूप से सही है. अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद इसका विरोध करता है. अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष ने सर्वोच्च न्यायालय के उच्चतम न्यायालय के सभी न्यायाधीशों को भी एक पत्र भेजा है. जिसमें इस प्रकार का कानून न पास हो सके.इसी के साथ रविंद्रपुरी ने कहा हमारा कार्यक्रम 10 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति से मिलने का पहले से ही तय है. इस विषय में दोनों से चर्चा की जाएगी और उन्हें से आग्रह किया जाएगा कि यह हमारी पद्धति नहीं है. इसलिए ऐसा कानून नहीं बनना चाहिए.बता दें कि इससे पहले 27 अप्रैल को साधु-संतों ने सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और साथी न्यायाधीशों समलैंगिक विवाह को लेकर पत्र भेजा था. जिसमें उन्होंने आग्रह किया कि समलैंगिक विवाह के विषय में घोर चिंतन किया जाना चाहिए. समलैंगिक विवाह का कानून बनना देश की परंपरा और संस्कृति के लिए बहुत ही घातक साबित होगा. इस संबंध में महंत रविंद्रपुरी ने सर्वोच्च न्यायालय को समलैंगिक विवाह कानून का विरोध करते हुए पत्र भेजा था.

इस पत्र में श्री महंत रविंद्रपुरी महाराज ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और अन्य न्यायाधीशों को समलैंगिक विवाह को मान्यता दिए जाने संबंधी याचिका की सुनवाई में उन्हें भी अपना पक्ष रखने का अवसर दिए जाने की मांग की है. पत्र में अखाड़ा परिषद अध्यक्ष ने कहा है कि विवाह एक पुरातन संस्था है. सभी धर्मों और समाज ने अपनी मान्यताओं और अनुभव के आधार पर विवाह परिवार संस्था की स्थापना की है. इसके लिए नियम और मर्यादाएं बनाकर एक सुसंगठित संस्कारित समाज के लिए विवाह और परिवार संस्था को पोषित किया है. लंबे समय से चली आ रही विवाह एवं परिवार की अवधारणा, स्वरूप, कर्तव्य, विधि, निषेध आदि भारतीय समाज के अवचेतन में स्थापित होकर हमारे डीएनए का भाग बन गए हैं. श्री महंत रविंद्रपुरी महाराज ने कहा विवाह संस्था में संशोधन का काम लोकसभा और विधानसभाओं पर छोड़ दिया जाना चाहिए. जल्दबाजी में इस पर विचार किए जाने के गंभीर परिणाम हो सकते हैं. इस संबंध में धर्मगुरुओं, शास्त्रीय विद्वानों और अन्य वर्गों की राय भी ली जानी चाहिए. इसके लिए समितियों का गठन कर पूरे देश में समाज की राय लिया जाना भी आवश्यक है. श्री महंत रविंद्रपुरी महाराज ने कहा इस संबंध में अपना पक्ष रखने के लिए उन्हें समय और अवसर दिया जाए.

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