Tuesday, March 19, 2024
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कैलाशानंद गिरि के कंगना रनौत के साथ केदारनाथ में दर्शन करने का विरोध, जानें क्या है कारण?

हरिद्वारः निरंजनी अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर कैलाशानंद गिरि का बॉलीवुड की मशहूर अभिनेत्री कंगना रनौत के साथ केदारनाथ जाने पर एक नया विवाद खड़ा हो गया है. एक तरफ काली सेना के प्रमुख स्वामी आनंद स्वरूप ने कैलाशानंद गिरि के कंगना रनौत के साथ केदारनाथ में दर्शन करने का विरोध किया है तो दूसरी तरफ हिंदू रक्षा सेना के अध्यक्ष स्वामी प्रमोदानंद ने भी कैलाशानंद के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए उन्हें आचार्य महामंडलेश्वर पद की गरिमा बनाए रखने और समाज से माफी मांगने की मांग की है. इसके साथ ही निरंजनी अखाड़े से मांग की है कि वह इस पर कैलाशानंद से जवाब मांगे और कार्रवाई करें. वहीं, इस मामले पर कैलाशानंद गिरि ने भी अपनी बात रखी है.

काली सेना ने किया विरोध: काली सेना प्रमुख स्वामी आनंद स्वरूप का कहना है कि आचार्य महामंडलेश्वर के पद की गरिमा होती है. हिंदू धर्म में शंकराचार्य और अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर का पद सबसे सर्वोच्च माना गया है. ऐसे में इस पद की गरिमा बनाए रखना संतों का ही कार्य है. उन्होंने कहा कि आचार्य आश्रम छोड़कर अभिनेत्री के साथ केदारनाथ जा रहे हैं, हाथ पकड़कर उनके साथ चल रहे हैं, यह हिंदुओं की आस्था के साथ खिलवाड़ है, इससे संतों की छवि भी खराब होती है. आनंद स्वरूप का कहना है कि उन्हें तत्काल प्रभाव से बर्खास्त करना चाहिए, अन्यथा उन्हें कम से कम चेतावनी तो देनी ही चाहिए.

हिंदू रक्षा सेना ने खोला मोर्चा: वहीं, हिंदू रक्षा सेना के प्रमुख व जूना अखाड़ा के महामंडलेश्वर स्वामी प्रबोधानंद ने कंगना रनौत के साथ आचार्य महामंडलेश्वर कैलाशानंद के केदारनाथ जाने का विरोध करते हुए कहा कि, वो अपने पद की गरिमा को समझें और तत्काल रूप से समाज से माफी मांगें.

कैलाशानंद बोले- कुभाव दूर करें: वहीं, पूरे प्रकरण पर कैलाशानंद गिरि ने कहा कि, यदि किसी के मन में भाव-कुभाव है तो उसे दूर कर लेना चाहिए. साधु-संतों के प्रति कंगना की श्रद्धा और आस्था है. कंगना मेरे लिए एक बेटी और बहन की तरह है. यदि उसके द्वारा मुझे स्पर्श भी किया जाता है तो मुझे नहीं लगता इसमें किसी को कोई परेशानी होनी चाहिए.

कैलाशानंद के पक्ष में आनंद अखाड़ा: उधर, कैलाशानंद गिरि के ऊपर लगे आरोप पर प्रतिक्रिया देते हुए आनंद अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर बालकानंद गिरि ने कहा कि साधु संतों का शुरू से ही अपने भक्तों को सनातन धर्म के प्रति जागरूक करना कार्य रहा है. पहले के समय में भी संत अपने भक्तों के साथ यात्रा किया करते थे, इसमें कुछ भी गलत नहीं है.

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